आपकी जिज्ञासाये समाधान ब्रह्माकुमारीज के 1

आज के कोर्स से आपकी जिज्ञासाये समाधान ब्रह्माकुमारीज के

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इस श्रृंखला में हमने कोर्स के कुछ ऐसे प्रश्नों को रखने की कोशिश की है, जो कोर्स पढने के बाद नये जिज्ञासुओ के मन में सामान्यतः उठती है।आशा करता हूँ, कि हमारा यह छोटा सा प्रयास आपकी कुछ जिज्ञासाओं का समाधान अवश्य करेगा।

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जिज्ञासा नः 1

क्या मेरा नाम ही मेरी असली पहचान नहीं है ?

समाधानः-

हीं, यह तो आपके शरीर का नाम है, आप शरीर नहीं आत्मा हैं।यदि हम लोगों से यह प्रश्न करते हैं कि-"आप कौन हैं" तो कोई कहता है मै डाक्टर हूँ, कोई इन्जीनियर, कोई अध्यापक के रूप में उत्तर देता है।वास्तव में शरीर में आने के बाद के ये हमारे व्यावसायिक professional नाम है, जब "हम" इस व्यवसाय में नहीं थे,लडकपन था, तब भी "हम" विद्यमान था और जब व्यवसाय छोडेंगे, वृद्ध हो जायेगें, तब भी "हम" विद्यमान होगा।

वास्तव में हमारी पहचान आत्मा के रूप में है।हमारा शरीर और हमारी सब कर्मेन्द्रिया कर्म करने के साधन हैं।

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जिज्ञासा नः 2

अब तक हम जो यह सुनते आये कि मन और बुद्धि आत्मा से अलग हैं और यह सूक्ष्म प्रकृति का बना हुआ सूक्ष्म शरीर है ?

समाधानः-

आत्मा एक चेतन वस्तु है।आत्मा को चेतन इसी कारण कहा जाता है कि वह सोच-विचार कर सकती है, दुख- सुख का अनुभव कर सकती है, अच्छा- बुरा करने का पुरूषार्थ (कर्म) कर सकती है।बल्कि मन स्वयं आत्मा के ही संकल्पों का या दुख-सुख के अनुभव का या इच्छा का नाम है।बुद्धि स्वयं आत्मा के ही निर्णय, विचार, विवेक- शक्ति का नाम है।और संस्कार भी स्वयं आत्मा द्वारा किये हुए अच्छे या बुरे कर्मों के आत्मा पर पडे प्रभाव का नाम है। या इसे ऐसे भी कह सकते हैं, अच्छे या बुरे कर्म करने के बाद आत्मा की जो वृत्ति (व्यवहार) बनती है, उसका नाम संस्कार या स्वभाव है।

अतः आत्मा को मन, बुद्धि एवं संस्कारों से अलग मानना तो गोया आत्मा को चेतन न मानना अर्थात उसे जड मानना होगा।चेतन आत्मा में और जड प्रकृति में तो यही अन्तर है कि प्रकृति इच्छा, विचार, प्रयत्न, और अनुभव आदि लक्षण नहीं हैं, पर आत्मा में यह सभी लक्षण है।जब प्रकृति भले-बुरे, सुख- शान्ति आदि का अनुभव नहीं कर सकती, तो उससे निर्मित यह सूक्ष्म शरीर भला कैसे हो सकता है।

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जिज्ञासा नः 3

कई लोग कहते हैं कि मस्तिष्क अथवा ब्रेन ही सोचता, इच्छा करता और शरीर द्वारा काम कराता है।यह बात कहाँ तक ठीक है ?

समाधानः-

मस्तिष्क आत्मा का control room (नियन्त्रणालय) है।जैसे मोटरकार में बैठा हुआ ड्राइवर विभिन्न यन्त्रों से कार चलाता, रोकता है,मोडता, आगे-पीछे करता है।वैसे आत्मा भी मस्तिष्क द्वारा सारे शरीर पर नियंत्रण व किसी भी भाग को कार्य में लगाती है।जैसे बोलने के लिए मुख ही यन्त्र है, उसी प्रकार सोचने, कर्मेन्द्रियो को निर्देशन (Dairection) देने के लिए मस्तिष्क ही आत्मा के पास यन्त्र है।

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जिज्ञासा नः 4

क्या आत्मा पुनर्जन्म भी लेती है, बहुत से लोग तो पुनर्जन्म को मानते ही नहीं।वे कहते हैं कि दूसरा जन्म किसने देखा, यही जन्म सब कुछ है ?

समाधानः-

निश्चय ही आत्मा पुनर्जन्म लेती है।आप संसार में देखते हैं कि किसी का जन्म सुशिक्षित, सभ्य, कुलीन घर में तो दूसरे का निर्धन, अशिक्षित, असभ्य घराने में।भला सोचिए इसका क्या कारण हो सकता है।बिना कारण के कोई कार्य नहीं हुआ करता,निश्चय ही आत्मा ने कुछ ऐसे कर्म किए होंगे, जिसका फल वह उस जन्म में नहीं भोग सकी।शरीर छोडने के बाद उसने अपने संस्कारों एवं कर्मो के अनुसार अपना फल भोगने के लिए अब पुनर्जन्म लिया।

आज Hipnotheripist( सम्मोहन- चिकित्सा विशेषज्ञ) मनुष्य के पिछले कई जन्मों की जानकारी कर लेते हैं।हम समाचारों में या वैसे सुनते हैं कि चार से दस साल के बच्चे अपने पूर्व जन्मों के बारे में बताते हैं।वे बताते हैं कि उनकी मृत्यु किस कारण से हुई थी।अपने पूर्व जन्म के माता पिता का नाम बताते हैं।इन सबसे यह सिद्ध होता है कि पुनर्जन्म होता है।

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ॐ शान्ति

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