आज के कोर्स से आपकी जिज्ञासाये समाधान ब्रह्माकुमारीज के 2

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आज के कोर्स से आपकी जिज्ञासाये समाधान ब्रह्माकुमारीज के

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जिज्ञासा नः5

जब परमात्मा का कोई रूप(ज्योतिस्वरूप) है, तो भला उसे निराकार (बिना आकार का) कैसे कहा जा सकता है ?

समाधानः-

देखिये, जैसे हम किसी मकान के बारे में कहते हैं, तो निश्चय ही किसी विशेष मकान की तुलना में उसे छोटा या बडा कह रहे होते हैं।स्पष्ट है- छोटा, बडा, पतला, मोटापा आदि सभी विशेषण एक दूसरे की तुलना में प्रयोग किये जाते हैं।इसी प्रकार "निराकार" शब्द भी सूक्ष्माकार और साकार की तुलना में होता है।हमने स्थूल शरीर धारण किया हैं, जिसे साकार कहते हैं।जो सूक्ष्म शरीर वाले देवता ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं, उन्हें सूक्ष्माकार कहा जाता है।परमात्मा ही एक ऐसी आत्मा है, जिसकी न स्थूल देह है, न सूक्ष्म काया है।इसलिए उसे निराकार(शरीर-रहित) कहा जाता है।अंग्रेजी में Incorporeal अर्थात जिसकी कोई दैहिक आकृति न हो, अंग-प्रत्यंग न हो।परन्तु परमात्मा का रूप है ज्योति- बिन्दु।

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जिज्ञासा नः6

क्या परमात्मा केवल अनुभव की चीज है या उसे देखा भी जा सकता है ?

समाधानः-

परमात्मा को किसी ने देखा नहीं है तो शिवलिंग नाम से उसकी यादगार कैसे बनाई गई है ? गीता में उसे "प्रकाशमय" और "दिव्य- रूप वाला" क्यों बताया गया है।लोग उसके दर्शन और साक्षात्कार की कामना क्यों करते ?स्पष्ट है कि परमात्मा का तो रूप है, परन्तु उसे दिव्य-दृष्टि द्वारा ही देखा जा सकता है।तभी दिव्य-दृष्टि को परमात्मा द्वारा प्राप्त होने वाला वरदान माना गया है।स्वयं हमारे ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में हजारों ने परमात्मा के इस दिव्य रूप का साक्षात्कार अथवा अनुभव किया है।

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जिज्ञासा नः7

क्या आत्मा कभी परमात्मा में लीन होती है, अभी तक तो हम ऐसा ही सुनते आये ?

समाधान:-

यदि आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती तो अविनाशी क्यों कहा जाता।वास्तव में आत्मा ब्रह्म नाम के प्रकाश तत्व में जाकर मुक्ति की अवस्था में वास करती है।उस अवस्था में आत्मा के मन-बुद्धि-संस्कार अव्यक्त अथवा अपने में लीन( Unconscious) अवस्था में रहते हैं।फिर उन्हीं के आधार पर आत्मा इस सृष्टि में आकर शरीर धारण करती है, न कि परमात्मा में लीन हो जाती है।

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जिज्ञासा नः8

क्या यह सृष्टि परमात्मा ने रची है ?

समाधानः-

परमात्मा तो निराकार है, उसके कोई हाथ- पाव तो है नहीं है और कोई भी साकार वस्तु बिना इन्द्रियों और स्थूल साधनों के बिना बन नहीं सकती।तब भला कैसे समझा जाए कि निराकार परमात्मा ने साकार सृष्टी रची? यह परमात्मा की रची हुई नहीं हो सकती, क्योंकि परमात्मा की तो अपनी 'काया' ही नहीं है।यदि कहा जाए कि परमात्मा ने पहले अपना शरीर बनाया, बाद में उसने सृष्टि रची, तो यह भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि साकार शरीर को बनाने के लिए भी तो साकार साधन तो चाहिए।अतः यह मालूम रहे. .............

"यह सृष्टि अनादि है और प्रकृति पुरूष का खेल है।प्रकृति की अपनी शक्तियाँ और अपने कार्य है।लेकिन परम पुरुष अर्थात परमात्मा के कर्तव्य दोनों से न्यारे हैं।वह रचयिता है अवश्य, परन्तु उस अर्थ में नहीं जैसा लोग समझते हैं।"

परमात्मा के रचना, पालना, विनाश का कार्य कैसे होता है, कल के कोर्स में हम विस्तार से समझेंगे।

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ॐ शान्ति

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