आपकी जिज्ञासाये समाधान ब्रह्माकुमारीज के 3

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आज के कोर्स से आपकी जिज्ञासाये समाधान ब्रह्माकुमारीज के

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आज की इस श्रृंखला में परमात्मा के सर्वव्यापक होने के विषय को प्रमुखता से उठाया गया है , नये जिज्ञासु परमात्मा के सर्वव्यापक न होने की बात आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते, हमने यहाँ रोचक प्रश्नों द्वारा इस महत्वपूर्ण विषय को समझाने की कोशिश की है।

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जिज्ञासा नः 9

आज तक जो हम सुनते आये कि परमात्मा सर्वव्यापक है।तो सर्वव्यापक का रूप कैसे हो सकता है ?

समाधानः

क्या पिता अपने पुत्रों में व्यापक होता है ? परमात्मा तो सर्व आत्माओं का परमपिता है, अतः वह सबमें व्यापक नहीं है।यदि परमात्मा सर्वव्यापक होता तो परमात्मा के गुण सबमें होते।मिठास का तो रूप नहीं है, पर चीनी का तो रूप है।अतः गुण का रूप तो नहीं होता पर गुण वाली वस्तु का रूप तो होता है।इसी प्रकार शान्ति, पवित्रता,आनन्द आदि का रूप नहीं है, पर इन गुणों के सागर परमपिता का तो रूप है, उनका धाम भी है, उनके कर्तव्य भी, उनका गुणवाचक नाम भी है।

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जिज्ञासा नः 10

परमात्मा सर्वव्यापक नहीं है, तो सब कुछ जाननेवाला कैसे हो सकता है ?

समाधानः

परमात्मा सर्वोतम शक्तियों से सम्पन्न है, उन्हें वस्तुओं को देखने या व्यक्तियों को जानने के लिए उनमें व्यापक होने की भला क्या आवश्यकता है। इस संसार के हर 5000 वर्ष में पुनरावृति repeat होने वाले इतिहास को भी परमात्मा अनादि निश्चित होने के कारण सदा जानते ही हैं।इस संसार की बनी बनाई भावी को परमात्मा त्रिकालदर्शी होने के कारण सदा जानते ही हैं।मनुष्यात्मा में व्यापक होने से तो केवल वर्तमान को ही जाना जा सकता है।

परमात्मा तो त्रिकालदर्शी और विश्व नाटक के अनादि निश्चित एवं पुनरावृत्ति वाला होने के कारण समस्त घटनाओं के सर्वज्ञाता हैं, न कि सर्वव्यापी होने के कारण।

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जिज्ञासा नः 11

गीता से कैसे स्पष्ट होता है, कि भगवान सर्वव्यापक नहीं है ?

समाधान:

मनुष्यों के मत पर आधारित शास्त्रों में भले यह कहा गया है कि परमात्मा सर्वव्यापक है।गीता शास्त्र में भगवान कहते हैं कि " मेरा जो स्वरूप है, वह तुम मेरे ही द्वारा जानो।अगर मनुष्य भगवान के स्वरूप को जानते तो वेद शास्त्रों के होते हुए भी भगवान को क्यों अवतरित होना पडता।और वह ऐसा क्यों कहते--यह योग और ज्ञान प्रायः लुप्त हो गया है, इसलिए मैं फिर सुनाने आया हूँ।इससे स्पष्ट होता है कि परमपिता परमात्मा को अवतरित होना पडता है।अवतारवाद के सिद्धांत से स्पष्ट होता है कि परमात्मा सर्वव्यापक नहीं है।भगवान ने यह भी कहा है।

"मैं परमधाम का वासी हूँ, मैं प्रवेश होने योग्य हूँ, मैं दिव्य जन्म लेता हूँ।बाद मै भगवान द्वारा दिये गये ज्ञान को लिपिबद्ध किया गया और मनमाने ढंग से परिवर्तन होते गये।

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जिज्ञासा नः 12

यह बात तो ठीक लगती है कि परमात्मा सर्वव्यापक नहीं है, पर लोग तो कहते हैं कण-कण में भगवान होते हैं ?

समाधानः

आप सोचेंगे तो पायेगे कि ऐसा सोचना तो परमात्मा का अपमान करना होगा।सर्वव्यापक मानने का अर्थ है सर्प, बिच्छू, कुत्ते, सूअर, बिल्ली आदि सभी निकृष्ट योनियों में परमात्मा को व्याप्त होना मानना है।जिन पत्थरों, धूल कणों को मनुष्य रौंदकर चला जाता है, जिन गन्दी चीजों से मनुष्य घृणा करता है, उसमें परमात्मा को देखना हमारी बुद्धि के दिवालियेपन की निशानी है।

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जिज्ञासा नः13

क्या परमात्मा ही सब कुछ करा रहा है ?

समाधानः

संसार में जो हर तरह के अपराध लूट, चोरी हो रही, तो यह सब क्या परमात्मा ही करता या कराता है।क्या इससे परमात्मा की महानता सिद्ध होती है।अगर परमात्मा ही यह सब अपराध कराता है, तो लोगों को दण्ड क्यों मिलना चाहिए।खूनी को फाँसी पर क्यों लटकाना चाहिए।परमात्मा बैठकर क्या पत्ता हिलायेगा।परमात्मा जब सर्व महान है, तो उसके कर्तव्य भी महान होगे।भगवान ने कहा मेरे कर्तव्य दिव्य होगे और भगवान को तो शिव अर्थात कल्याणकारी कहा जाता है।वह तो रचना, पालना और विनाश कराता है।

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ॐ शांति

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