कुछ जीवनोपयोगी समाधान भाग ➡ 03
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राजयोग मेडिटेशन कोर्स :: कुछ जीवनोपयोगी समाधान
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भाग ➡ 03
आपने परमात्मा द्वारा उद्घाटित ज्ञान और राजयोग की जो शिक्षा पाई, हम उसी आधार पर कुछ जीवनोपयोगी जानकारी दे रहे, तो प्रस्तुत है आज तीसरा भाग. ...................
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18 खुशहाल जीवन के लिए क्या करें ?
संसार के सभी लोग खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं। यदि आप एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं,तो कुछ समस्याएँ आना स्वभाविक हैं।कुछ लोग आपसे इर्ष्या कर सकते हैं या आपके और अन्य के संस्कारों का मिलन नहीं हो पाता आदि। इससे कुछ परिस्थिति भी उत्पन्न हो सकती है परन्तु इसमें याद रखें कि अगर स्वस्थिति श्रेष्ठ होगी तो परिस्थिति अपने आप ही बदल जाएगी।अनुमान लगाने से सावधान रहें, यही एक बुद्धिमान मनुष्य की पहचान है।और एक बुरी स्थिति से सीख भी अवश्य लें।अपनी स्थिति को अचल बनाने हेतु सेवाकेंद्र पर प्रतिदिन ईश्वरीय महावाक्य सुनने अवश्य जाएँ।घर के वातावरण को बदलने के लिए दिन में ५-६ बार पवित्र वाइब्रेशन फैलाएं। बापदादा का आहवान करें। स्वमान का अभ्यास करें जैसेकि मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ , पवित्रता का फ़रिश्ता हूँ , मास्टर सर्वशाक्तिवान हूँ।एक पावरफुल प्रैक्टिस- घर के सदस्यों को आत्मिक दृष्टि से देखें और संकल्प करें ये सब बहुत अच्छी आत्माएं हैं , मुझे बहुत प्यार करती हैं।
परमात्मा पवित्रता के सागर हैं और उनसे सम्बन्ध भी वही जोड़ सकता है जिसने पवित्र रहने की प्रतिज्ञा ली हो।अगर आप अमृतवेले प्रभु मिलन का आनंद नहीं ले पा रहे हैं तो अपवित्रता इसके पीछे एक सूक्ष्म कारण हो सकता है ।क्योंकि मन में ही गंदगी है इसलिए उसे स्वमान के अभ्यास से पवित्र बनाएं – मैं एक परम पवित्र आत्मा हूँ।रात को सोने से पहले पानी चार्ज करके पीयें , घूमते – फिरते 15 मिनट तक योगाभ्यास करें , पाँच स्वरूपों का अभ्यास करें , स्वमान की प्रैक्टिस करें।सवेरे उठकर नहा-धोकर योग करें।
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19 अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति
राजयोग संसार की सब से गुहय्तम विद्या है।इसमें केवल हम परमात्मा को कुछ देर देखते ही नहीं बल्कि उनके साथ रहते हैं।उनके साथ योग लगाने से परमसुख- अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करते हैं। चित्त शांत और संतुष्ट हो जाता है।परन्तु इस विद्या का परम आनंद वही व्यक्ति ले सकता है जो अपने को कुछ नियमों में बांध ले।
दिव्य अनुभवों को प्राप्त करने के लिए कुछ नियम – हमें पवित्रता के मार्ग पर बड़ी strongly चलना होगा।रॉयल मैनर्स धारण करने होंगे। व्यर्थ बातचीत , बहस से बच के रहना है | उचित नींद लेनी है। चुगली करना , शिकायत करना- इन सब बातों का भी परहेज़ रखना है।Time waste नहीं करना है। मुरली कदापि मिस नहीं करनी है ।कुछ देर यज्ञ सेवा भी अवश्य करें।थोड़े शब्दों में बात को रखना है।चार्ट लिखने की भी आदत बनाएं।जो चीज़ें मन को भटकाती हैं उनसे परहेज़ रखें । त्याग वृत्ति को धारण करें।सुक्ष्म पापों से सावधान रहें क्योंकि पापकर्म हमारी शक्तियों को बहुत तेज़ी से ह्रास कर देते हैं। जैसेकि हमारे व्यवहार से दूसरा व्यक्ति दुखी न हो।हमारी दृष्टि अवगुणों की ओर न जाए। हमारा आकर्षण किसी की देह की ओर न हो। किसी की बुराई न करें न सुनें। परचिन्तन न करें।
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20 सहज सफलता और पावरफुल विज़न
हर व्यक्ति सहजतापूर्वक जीवन में सफलता चाहता है।यह एक सुंदर सिद्धांत है कि जो व्यक्ति स्वयं easy है,उसकी हर बात easy हो जाती है।कार्य शुरू करने से पूर्व हम क्या चिंतन कर रहे हैं , उसका प्रभाव हमारे पूरे कर्म पर पड़ता है।किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व शिवबाबा को परमसतगुरु के रूप में याद कर निर्विघनता का , सफलता का वरदान लें।यह महसूस करें की वो मेरे साथ है।विद्यार्थी सुबह छः बजे तक अवश्य उठ जाएँ।जिस विषय में स्वयं को कमज़ोर महसूस करते हों , उनके बारे में विचार करें कि यह तो मेरे favourite हैं , यह तो मुझे आते हैं।इस अभ्यास से subconscious mind बुद्धि में उनके प्रति blockage को खोल देगा।
मनुष्य एक भावुक प्राणी है , जब वह seriously किसी घटना को देख लेता है,तो वो उसके मानसपटल पर गहराई से छप जाती है।उन visions को alter करने हेतु उन्हें हल्का करें , change करें ।हल्की होते – होते वे प्रायः लोप हो जाएँगी। श्रेष्ठ स्मृति द्वारा पास्ट की सभी स्मृतियाँ विस्मृत हो जाती हैं। एक शक्तिशाली आत्मा visions को reflect कर देती है।सुंदर vision लायें तो बुरी vision स्वतः बदल जायेंगी।
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21 परमात्मा को अपना साथी बना लें
आज कई युवा अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। उनके जीवन में सूखेपन के कई कारण हैं- इस उम्र में hormone imbalance से sexual feelings इमर्ज होना , असफल होने पर मित्र और घरवालों की टेड़ी नज़र का सामना न कर पाना आदि।परन्तु वह ये याद रखें की परमात्मा की दृष्टि सभी की ओर प्रेम वाली होती है।इसलिए हम उसको अपना companion बना लें , good friend बना लें , उससे अपने दिल की हर बात share करें। रोज़ मुरली पढकर उस पर अच्छा चिंतन करें और लिखें।सेवाकेंद्र पर जाकर सेवा का कार्य करें।
यदि योग में एकाग्रता नहीं बनती तो सूक्ष्म रीति से observe करें कि मन कहाँ भटक रहा है और फिर अपने से प्रश्न करें कि क्या मुझे यह सोचना चाहिए ? क्या मैं कुछ और श्रेष्ठ चिंतन कर सकता हूँ। ईश्वरीय महावाक्य सुनें।अपने mind को good training दें। ड्रामा के ज्ञान को पक्का कर लें – संकल्प करें की हर आत्मा इस सृष्टि रुपी नाटक में अपना best पार्ट बजा रही है।स्वयं को देह से न्यारा फील करें। एक स्वमान को कुछ दिन तक करें जिससे ब्रेन का damaged portion दोबारा heal हो जाए। अगर visualization न कर पा रहे हों तो कागज़ पर चित्र बनाकर प्रयास करें।
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22 गिरती कला से चढ़ती कला की ओर
सत्यम शिवम् सुन्दरम – सत्यम अर्थात् भगवान सत्य है , शिवम् अर्थात् वह सदा कल्याणकारी है , सुन्दरम अर्थात् उसके जैसा तेज किसी का हो नहीं सकता , वही सर्वोच्च सत्ता है , most beautiful है।प्रभु मिलन एक अलौकिक अनुभव है , उस अलौकिकता में समय की भी अविद्या हो जाती है। मन तृप्त और आनंद विभोर हो जाता है। यह भौतिक विज्ञान का नियम है कि हर प्रक्रिया हमारे चारों ओर के वातावरण को गिरावट की ओर ले जाती है | (all processes occur such that they tend the surroundings towards maximum spontaneity )।इसी रीति से हम आत्माएँ भी जब प्रकृति के साथ इस खेल में आईं तो हमारी भी गिरावट हुई अर्थात् कल कम होती गई।भक्ति की कला भी कम हुई जैसे वो निष्काम नहीं रही , व्यभिचारी हो गयी।आज तो बिल्कुल ही शक्तिहीन हो गयी है। इसलिए इस संपूर्ण गिरावट के समय में जब मनुष्यात्माओं की zero कला हो गयी है तब परमात्मा अवतरित होकर यह सन्देश देते हैं कि मेरे से मन की तार जोड़ तो मेरी शक्तियां तुम में आने लगेंगी।उनकी याद से ही मन pure , बुद्धि दिव्य हो जाती है , अनेक talents विकसित होने लगते हैं।
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23 परमात्मा की प्राप्ति
अब स्वयं परमात्मा इस धरती पर आकर अपना परिचय दे रहें है। जी हाँ, स्वयं योगेश्वर ने ही आकर राजयोग सिखलाया है , उसने ही हमें हमारे रियल स्वरुप का , स्वयं के स्वरुप का , सृष्टि चक्र का ज्ञान दिया है। उसने बताया की वो देहधारी नहीं हैं , जन्म मरण से न्यारे हैं , सूक्ष्म अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु हैं। अतः आपको हार्दिक निमंत्रण है कि आइए और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान को प्राप्त कीजिये , परमात्मा को जानकार उनसे योग लगाइए।
अब तो मन में इसी लग्न की अग्नि को प्रज्जवलित करें कि मुझे तो उसे पाना है। भगवान की आज्ञाओं का पालन करके उनके दिलतख्तनशीन बनना है। ये बात मन से निकाल दें कि लोग क्या कहेंगें ? इतनी श्रेष्ठ प्राप्ति के आगे ये बातें कुछ भी मायने नहीं रखतीं। परमपिता परमात्मा शिव की याद से लौकिक कार्यों की भी उलझनें समाप्त हो जाती हैं , मनोस्थिति श्रेष्ठ हो जाती ,पापकर्म नष्ट हो जाते हैं , उनके अपनेपन की अनुभूति होती है।
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24 कर लो अनुभव प्रभु प्यार का
आज परमात्मा अपनी पहचान स्वयं ही दे रहे हैं। उनका किसी धर्म , जाती , सम्प्रदाय , भाषा के प्रति झुकाव नहीं बल्कि वे तो सभी को अपना बच्चा समझते हैं। सभी उसको प्यारे लगते हैं।इस धरा पर पधारकर उसने अपना प्रेम हम बच्चों पर बरसा दिया है। आज समय की भी यही पुकार है कि अब हमें सब कुछ भूल उसके ही प्यार में डूब जाना चाहिए।भगवान ने हमें पहली फीलिंग ही यह कराई है कि मैं तुम्हारा हूँ। अब हमें इसी स्मृति में रहना चाहिए कि हमने अपनी अंतिम मंजिल को प्राप्त कर लिया है।
धर्मग्रंथों में जो बातें लिखी हुई हैं वह सत्य तो हैं परन्तु मन के निर्बल होने के कारण हम उन्हें धारण नहीं कर पाते। मन की शक्ति हमें परमात्मा के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है।परमात्मा से मिलन मनाने का आधार है मन की पवित्रता। हमारे मन में किसी भी प्रकार के संशय के संकल्प न हों।हम अनुशासित प्रणाली से जीवन जीयें , दिव्य गुणों की धारणा करें , व्यर्थ न सोचें , संगदोष से बचें , रोज़ ईश्वरीय महावाक्य सुनें।
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25 अपना हाथ परमात्मा के हाथ में देने द्वारा सुरक्षा का अनुभव
जैसे एक बच्चा अपना हाथ अपने पिता के हाथ में दे सुरक्षित महसूस करता है , उसी तरह अगर हम सभी अपने जीवन की बागडोर अपने परमपिता परमात्मा शिव के हवाले कर देते हैं, यानी उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, पूर्ण समर्पण कर जीवन जीते हैं तो जीवन की समस्याएँ समस्या नहीं लगती। पूर्ण समर्पण माना सब कुछ तेरा। सूक्ष्म बात यह है कि हमें मैं पन को समर्पित करना है।
विपरीत परस्थितियों में परमात्मा का आह्वान करने से कठिनाई का अनुभव नहीं होता।हम एकाग्रचित्त योगयुक्त होकर विभिन्न योग्यताओं का भी आह्वान कर सकते हैं। इससे विभिन्न योग्यताएँ emerge होने लगतीं हैं और नई विशेषताएँ भी बढने लगती हैं।एकाग्रता की शुरुआत स्वयं को आत्मा देखने से करें और फिर मन के संकल्पों और बुद्धि के तीसरे नेत्र को शिवबाबा पर एकाग्र करें।
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26 खुदा दोस्त से बातचीत
जैसे Prime Minister से बातचीत वही व्यक्ति कर सकता है जो उसके दर्जे का हो वैसे ही परमात्मा से भी वही बातें कर सकता है जो उसके दिल के करीब आ जाए , उससे गहरा नाता जोड़ ले चाहे माँ के रूप में , चाहे पिता के रूप में या मित्र , बच्चे इत्यादि के सम्बन्ध से उसे याद करे। उससे ही अपनी हर बात करे ,यानी उसके लिए वही एक बल एक भरोसा हो। उसके दिल के करीब वही आ पाता है जो संपूर्ण पवित्र बनने का संकल्प मन में रखता है।
जब हमारी बुद्धि व्यर्थ से मुक्त होगी तभी हम उसके द्वारा दिए गए उत्तरों को catch कर सकेंगे।बुद्धि को व्यर्थ से मुक्त रखने के लिए अंतर्मुखी बनना , निश्चिन्त हो जाना, सब कुछ समर्पण भाव से करना , संकल्प भी उसे समर्पित कर देना बेहद आवश्यक है।भगवान भी ऐसे बच्चों की मदद अनेक तरीकों से करने के लिए सदैव तत्पर रहता है।
नोट-हम अगर उसके कार्य में सहयोगी बन जाएं तो वो हमारे कार्यों में सहयोग अवश्य देता है
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ॐ शांति
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