आपकी जिज्ञासाये समाधान ब्रह्माकुमारीज के 6
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आज के कोर्स से आपकी जिज्ञासाये समाधान ब्रह्माकुमारीज के
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जिज्ञासा नः22-
हिन्दू धर्म के संस्थापक और समय का तो किसी को पता नहीं।लोग कहते हैं यह अनादिकाल से चला आ रहा है,पर इसका स्थापक और स्थापना काल तो होगा ही, चाहे यह कितना प्राचीन क्यों न हो ?
समाधानः-
देखिए, आज हिन्दू धर्म के लोगों की क्या हालत हुई कि वे अपने धर्म का वास्तविक नाम, संस्थापक, समय को भी नहीं जानते ? अन्य धर्म के लोग इन सब बातों को जानते हैं।परन्तु सबसे प्राचीन होने के कारण लोग सब भूल गये।अब परमपिता शिव ने सृष्टि चक्र और कल्पवृक्ष का राज समझाते हुए बताया कि हमारे धर्म का वास्तविक नाम है-" आदि सनातन देवी देवता धर्म"।इसे 'आदि' इस कारण से कहा जाता है कि यह सतयुग के आदि से चला आ रहा है।"सनातन" इसलिए कहते हैं, क्योंकि कलियुग के अन्त में जब इस धर्म की पूर्णतः ग्लानि हो जाती है तो भगवान इसकी पुनः स्थापना करा देते हैं, इस तरह सृष्टि का महाविनाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।"देवी देवता" इसलिए जुडा है कि इस धर्म के आदि काल अर्थात सतयुग, त्रेतायुग के लोग देवी-देवता थे और दिव्य गुणों से युक्त थे।
परन्तु आज लोग इन रहस्यों को न जानने के कारण लगभग 2500 वर्ष पूर्व फारस वासियों द्वारा दिये हिन्द नाम जो बाद में हिन्दू
बन गया, उसे ही अपने धर्म का वास्तविक नाम समझ बैठे।
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जिज्ञासा नः23-
जैसा कि आज के कोर्स में बताया कि गीता- ज्ञान परमात्मा शिव ने दिया, परन्तु ऐसा क्यों न मान लें कि परमात्मा शिव ने श्रीकृष्ण के तन में प्रवेश करके द्वापर में यह ज्ञान दिया।दूसरे श्रीकृष्ण पहले या श्रीराम ?
समाधानः-
किंचित सोचिए कि अगर भगवान का दिव्य अवतरण द्वापर के अन्त में हुआ होता और तभी उन्होंने अधर्म का विनाश और दैवी धर्म की स्थापना की होती तो द्वापर के बाद सतयुग आ जाना चाहिए था।पर उसके बाद तो कलियुग आता है।यदि कलियुग अर्थात पतन का युग ही आना था, तो भगवान के दिव्य अवतरण और उनके कर्तव्य का लाभ ही क्या हुआ, भगवान की महिमा का क्या हुआ।उनके अवतरण के बाद सृष्टि में पवित्रता, सुख और शांति का युग सतयुग आना चाहिए। कहा भी गया है-"यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवतिभारत, अभ्युत्थानम् अधर्मस्य.....। अतः भगवान का अवतरण धर्म की अति ग्लानि के समय कलियुग में होता है और उनके कर्तव्यों के बाद सतयुग का आरंभ होता है।
सृष्टि चक्र की कहानी में आपने जाना सतयुग में मनुष्य सोलह कला सम्पन्न और त्रेतायुग में मनुष्य चौदह कला सम्पूर्ण अवस्था वाले होते हैं।श्रीकृष्ण का सतयुग में प्रथम जन्म होता है।राम का नौवां जन्म त्रेतायुग के आरम्भ में होता है। अतः स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण 16 कला सम्पन्न होने से पहले हुए।
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जिज्ञासा नः24-
श्रीकृष्ण के बारे में जो यह वर्णन मिलता है कि उनकी 16,108 पटरानिया थी, उसने गोपियों के चीर चुराये, माखन चुराने या गाय चराने आदि,आदि, क्या ये बातें गलत हैं या इनमें कुछ तथ्य है ?
समाधानः-
वास्तव में यह कलंक मिथ्या है, बात कुछ और है।देह को आत्मा का वस्त्र भी कहा गया है,गीता के भगवान शिव ने कल्पवृक्ष का ज्ञान देकर आत्माओं के शरीर रूपी वस्त्र को हर लिया था, अर्थात उन्हें विदेही ( देह अभिमान से रहित) कर दिया था।पर अज्ञान के कारण लोगों ने सबसे श्रेष्ठ चरित्र वाले कृष्ण पर गोपियों के वस्त्र चुराने का मिथ्या आरोप लगाया। श्रीकृष्ण विश्व महाराज थे, भला वे गाय क्यों चरायेगे।इसी तरह सतयुग में सब कुछ प्रचुर मात्रा मे था घी, दूध की नदियाँ बहती थी, वे माखन क्यों चुरायेगे।
108 आत्माये इस संगम पर माया से सम्पूर्ण विजयी होती है।वे स्वर्ग में पटराणा या पटरानी बनती हैं।यही विश्व महाराजा या विश्व महारानी का पद प्राप्त करती है।इन 108 आत्माओं के स्वर्ग में जो निकट के मित्र सम्बन्धी कुटुम्बी होते हैं, वह 16,000 होते हैं।वे भी संगम पर अत्यंत पावन बनते हैं। अतः108 के साथ 16,108 की संख्या भी शुभ मानी जाती है।परन्तु बाद में इस वास्तविकता को न जानने के कारण यह भ्रान्ति प्रसिद्ध हो गई की श्रीकृष्ण की 16,108 पटरानिया थी।
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जिज्ञासा नः25-
राजयोग का अभ्यास शुरू करते ही हम अनुभूति Rializetion की स्टेज पर पहुंच सकते हैं, या समय लगता है ?
समाधानः-
कुछ लोगों को तो राजयोग का अभ्यास शुरू करते ही Rializetion के स्तर पर पहुंच जाते हैं, पर ज्यादातर को इन चार स्तर से गुजरना पडता है........
1.प्रारम्भ (Initiation) –
इसकी शुरुआत ज्ञान के द्वारा की जाती है। ये वो ज्ञान है जो स्वयं परमात्मा ने दिया है , जिसके लिए किसी भी तर्क की आवश्यकता ही नहीं है , जैसेकि- उसने बताया हम सब आत्माएं हैं। वो सर्वज्ञ तो है लेकिन सर्वव्यापी नहीं, आदि।
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2.ध्यान (Meditation)-
इसमें हम एक लहर में चिंतन करते हैं ।जैसेकि- आत्मा के बारे में चिंतन , परमात्मा के बारे में चिंतन की वे तो महाज्योति हैं, उनसे हमारे सम्बन्ध के बारे में चिंतन करना कि वे तो मेरे बाबा हैं,परम सतगुरु हैं |
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3.एकाग्रता (Concentration)-
हम परमात्मा के स्वरुप पर मन को एकाग्र करते हैं | इसे visualization भी कहते है । इस स्टेप की धीरे – धीरे practice बना लें , ज़बरदस्ती करने की आवश्यकता नहीं।
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4.अनुभूति(Realization)-
आत्मा के मौलिक गुणों के अनुभव को realization कहते हैं ।जब हम उस सुप्रीम के साथ योग लगाते हैं तो आत्मा में उनके ही जैसे गुण आने लगते हैं ।
मन को शान्त करने हेतु सुंदर विचारों का प्रयोग करें। स्वमान का चिंतन करें।
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जिज्ञासा नः26-
राजयोग के अभ्यास से निर्भय और निश्चिंत जीवन प्राप्त करने के कुछ सरल उपाय बताये ?
समाधानः-
राजयोग के अभ्यास द्वारा बनें निर्भय और निश्चिन्त हो सकते हैं। मन के प्रकम्पन vibration ही हमें दूसरों के पास या उनसे दूर ले जाते हैं ।हम vibrations के सिद्धांत द्वारा पड़ोसियों की भी समस्याओं को दूर कर सकते हैं। सवेरे उठ स्वमान करें – मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, फिर उनको भ्रकुटी के बीच चमकती आत्मा देख संकल्प करें ये तो मेरे गुड friends हैं , मेरे शुभचिंतक हैं , हमारे बीच सब कुछ ठीक हो जाएगा । spiritual power आपको ऐसे संकल्प करने में मदद करेगी ।परमात्मा से बहुत अच्छा connection जोडें और उन्हें भी मदद देने के लिए आग्रह करें।
मन में भय का कारण आपके पूर्व जन्म या इस जन्म के कुछ बुरे अनुभव हो सकते हैं | इसको दूर करने के लिए 108 दिन तक स्वमान की practice करें - मैं आत्मा अजर , अमर , अविनाशी हूँ ,मैं आत्मा शिव शक्ति हूँ ,शिव की शक्तियाँ मेरे पास हैं।सुबह उठते ही कम से कम सात बार संकल्प करें – मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ , निर्भय हूँ।घर से कहीं बाहर जाने से पहले संकल्प करें – मेरे साथ सर्वशक्तिवान है , उनकी छत्रछाया में मैं सुरक्षित हूँ ।
कुछ विशेष प्राप्ति के लिए मास्टर सर्वशक्तिवान के स्वमान का उपयोग करें।भगवानुवाच- जो मास्टर सर्वशक्तिवान का अभ्यास करते हैं वे अपनी संकल्प शक्ति द्वारा बहुत कुछ कर सकते हैं।
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जिज्ञासा नः27
जीवन की आम समस्याओं कलह, मानसिक समस्याओं से राजयोग द्वारा छुटकारा कैसे पाया जा सकता है ???
समाधान:-
क्रोध से बचाव Irritation- माता-पिता का अपने बच्चों को मारना एवं उनसे नाराज़ होना स्वाभाविक सा हो गया है ।इस समस्या का समाधान है कि वे अपने बच्चों को आत्मिक दृष्टि से देखना प्रारंभ करें। स्वमान का अभ्यास करें – मैं एक शान्तस्वरूप आत्मा हूँ ।उनकी activities को enjoy करें , धैर्यतापूर्वक व्यवहार से बदलाव लाने का प्रयास करें।
एकाग्रता की कमी- आज mobile, internet , t.v. , के प्रयोग से बच्चों की मानसिक शक्ति क्षीण होती जा रही है ।इसलिए इनका पाजिटिव उपयोग ही करें और सवेरे active subconscious mind को command दें की मैं बुद्धिमान हूँ , चरित्रवान हूँ , एकाग्रचित्त हूँ।
Spiritual life और पढाई में बैलेंस – मन को लाइट रखने और स्वमान के अभ्यास से दोनों में ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। पढाई को enjoy करें ,इससे उसमें कुशलता बढ जाएगी।खाली समय में राजयोग का अभ्यास करें , स्वमान का अभ्यास करें – मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ|
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ॐ शांति
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