Revision Course 1 R
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पहले दिन का कोर्स रिवीज़न
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आज के कोर्स के प्रमुख बिन्दु headlines इस तरह है:-
मनुष्य सारा दिन वार्तालाप में ‘ मैं ’ और ‘ मेरा ’ शब्द का बार- बार प्रयोग करता रहता है, पर यथार्थ रूप में यह नहीं जानता कि ‘ मैं ’ कहने वाली सत्ता का स्वरूप क्या है, अर्थात ‘ मैं’ शब्द जिस वस्तु का सूचक है, वह क्या है ?
जिस प्रकार शरीर पाँच तत्वों यथा-जल, वायु, अग्नि, आकाश, और पृथ्वी का पुतला है,वैसे ही आत्मा मन, बुद्धि और संस्कार से बनी होती है।
आत्मा में ही विचार करने और निर्णय करने की शक्ति होती है तथा वह जैसा कर्म करती है उसी के अनुसार उसके संस्कार बनते है।
आत्मा की सूक्ष्म शक्तियाँ:-
1 मन:
संकल्प शक्ति,
कल्पना,सोचना,महसूस करना ,चिन्तन करना आदि
2 बुद्धि:
मनोबल समझना,तोलना,परखना,तर्क,निर्णय करना आदि
3 संस्कार:
अनुभव एवम् कर्म,आदत,लत,स्वभाव,व्यक्तित्व एवम् स्मृतियां
मन में चलने वाले विचार चार तरह के होते हैं-
1 सकारात्मक विचार:
गुणों एवम् मूल्यों से संबंधित
2 नकारात्मक विचार:
विकारों बुराइयों,हीनभावना स्वार्थ से संबंधित
3 आवश्यक विचार :
दिनचर्या से संबंधित
4 व्यर्थ विचार:
भूतकाल एवम् अनिश्चित भविष्य की चिंताएं
"जैसा चिंतन वैसा जीवन, जैसा सोचेंगे वैसा बनेंगे"
आत्मा का रूप-
आत्मा अत्यंत सूक्ष्म,एक ज्योति-कण के समान है।जैसे रात्रि को आकाश में जगमगाता हुआ तारा एक बिन्दु-सा दिखाई देता है, वैसे ही दिव्य-दृष्टि द्वारा आत्मा भी एक तारे की तरह ही दिखाई देती है।
आत्मा का निवास-
आत्मा शरीर में भृकुटि में रहती है।इसलिए भृकुटी में टीका लगाने, माताओं में बिन्दी लगाने की प्रथा है।जब मनुष्य अपने को भला- बुरा कहता है तो वह भृकुटी पर हाथ रखता है।
आत्मा ही शान्ति अथवा दुःख का अनुभव करती तथा निर्णय करती है।अत: मन और बुद्धि आत्मा से अलग नहीं है।परन्तु आज आत्मा स्वयं को भूलकर देह- स्त्री, पुरुष, बूढ़ा जवान इत्यादि मान बैठी है। यह देह-अभिमान ही दुःख का कारण है।
शरीर मोटर के समान है तथा आत्मा इसका ड्राईवर है, अर्थात जैसे ड्राईवर मोटर का नियंत्रण करता है, उसी प्रकार आत्मा शरीर का नियंत्रण करती है।आत्मा के बिना शरीर निष्प्राण है, जैसे ड्राईवर के बिना मोटर।
जिस मनुष्य को अपनी पहचान नहीं है वह स्वयं तो दुखी और अशान्त होता ही है, साथ में अपने सम्पर्क में आने वाले मित्र-सम्बन्धियों को भी दुखी व अशान्त बना देता है।सच्चे सुख व सच्ची शान्ति के लिए स्वयं को जानना अति आवश्यक है।
आत्म अभिमान:
जब संकल्प, भावना, वृत्ति, दृष्टि, व्यवहार, बोल, कर्म, इन सात गुणों ( प्रेम, पवित्रता, सुख, शान्ती, आनन्द, ज्ञान, शक्ति ) से प्रभावित है
देह अभिमान:
जब संकल्प, भावना, वृत्ति, दृष्टि, व्यवहार, बोल, कर्म, इन सात विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और नफरत) से प्रभावित है
ॐ शांति
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