Revision Course 3 R
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तीसरे दिन के कोर्स का रिवीजन
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आज के कोर्स के महत्वपूर्ण बिन्दु इस तरह हैं-
प्राय: सभी धर्मो के लोग कहते हैं कि परमात्मा एक है और सभी का पिता है और सभी मनुष्य आपस में भाई-भाई हैं।वह पारलौकिक परमपिता कौन है जिसे सभी मानते है ?
हर एक धर्म के अनुयायी निराकार, ज्योति-स्वरूप परमात्मा शिव की प्रतिमा (शिवलिंग) को किसी-न-किसी प्रकार से मान्यता देते है।भारतवर्ष में तो स्थान-स्थान पर परमपिता परमात्मा शिव के मंदिर है।
मुसलमानों के मुख्य तीर्थ मक्का में भी एक शिवलिंग के आकार का पत्थर ‘संगे-असवद’ है, जिसे सभी मुसलमान यात्री बड़े प्यार व सम्मान से चूमते है।वे इब्राहिम तथा मुहम्मद द्वारा उनकी स्थापना हुई मानते है।
ईसाइयों के धर्म-संस्थापक ईसा ने तथा सिक्खों के धर्म स्थापक नानक जी ने भी परमात्मा को एक निराकार ज्योति ही माना है। यहूदी लोग तो परमात्मा को ‘जेहोवा’ नाम से पुकारते हैं, जो नाम शिव का ही रूपान्तर मालूम होता है।
कलियुग के अन्त में प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सतयुगी दैवी सृष्टि की स्थापना के साथ परमपिता परमात्मा शिव पुरानी, आसुरी सृष्टि के महाविनाश की तैयारी भी शुरू करा देते है।
परमात्मा शिव शंकर के द्वारा विज्ञान-गर्वित तथा विपरीत बुद्धि अमेरिकन लोगों तथा यूरोप-वासियों (यादवों) को प्रेरित कर उन द्वारा ऐटम और हाइड्रोजन बम और मिसाइल तैयार कराते हैं।
विष्णु की चार भुजाओं में से दो भुजाएँ श्री नारायण की और दो भुजाएँ श्री लक्ष्मी की प्रतीक है।
इस प्रकार, परमपिता परमात्मा शिव सतयुगी तथा त्रेतायुगी पवित्र, दैवी सृष्टि (स्वर्ग) की पालना के संस्कार भरते है, जिसके फल-स्वरूप ही सतयुग में श्री नारायण तथा श्री लक्ष्मी और त्रेतायुग में श्री सीता व श्री राम और अन्य चन्द्रवंशी राजा राज्य करते है।
शिव का अर्थ है – "कल्याणकारी"।परमात्मा का यह नाम इसलिए है, क्योंकि वह धर्म-ग्लानि के समय, जब सभी आत्माएं विकारों के कारण दुखी, अशान्त, पतित एवं भ्रष्टाचारी बन जाती है, तब उनको पुन: पावन तथा सम्पूर्ण सुखी बनाने का कल्याणकारी कर्तव्य करते है।
जब सारी सृष्टि विकारों के पंजे में फंस जाती है तब परमपिता परमात्मा शिव सहज ज्ञान और राजयोग की शिक्षा देते है तथा सभी आत्माओं को परमधाम में ले जाते है तथा मुक्ति एवं जीवनमुक्ति का वरदान देते है।
बहुत से लोग शिव और शंकर को एक ही मानते है, परन्तु वास्तव में इन दोनों में भिन्नता है।आप देखते है कि दोनों की प्रतिमाएं भी अलग-अलग आकार वाली होती है। शिव की प्रतिमा शिवलिंग के आकार की होती है, जबकि महादेव शंकर की प्रतिमा शारारिक आकार वाली होती है।
कलियुग के अन्त में जबकि साधू, सन्यासी, गुरु इत्यादि सभी पतित तथा दुखी होते है और अज्ञान-निद्रा में सोये होते है, जब धर्म की ग्लानी होती है, तब पतित-पावन परमात्मा शिव इस सृष्टि में दिव्य-जन्म लेते है।परमात्मा शिव के दिव्य-जन्म को ‘शिवरात्रि’ ही कहा जाता है।
परमात्मा सर्व व्यापक नहीं है! ओह, अपने परम प्यारे, परम पावन, परमपिता के बारे में यह कहना कि वह हर जीव में कुत्ते , बिल्ले , ठिक्कर, भित्तर सभी में है – यह कितनी बड़ी भूल है।
यदि परमात्मा सर्वव्यापी होते तो उसके शिवलिंग रूप की पूजा क्यों होती ? यदि वह यत्र-तत्र-सर्वत्र होते तो वह ‘दिव्य जन्म’ कैसे लेते, मनुष्य उनके अवतरण के लिए उन्हें क्यों पुकारते और शिवरात्रि का त्यौहार क्यों मनाया जाता ? यदि परमात्मा सर्व-व्यापक होते तो वह गीता-ज्ञान कैसे देते।
सर्वव्यापी कहने से भक्ति, ज्ञान, योग इन सबका खण्डन हो गया, क्योंकि यदि ज्योतिस्वरूप भगवान का कोई नाम और रूप ही न हो तो न उससे सम्बन्ध भला कैसे (योग) जोड़ा जा सकता है, न ही उनके प्रति स्नेह और भक्ति ही प्रगट की जा सकती है।
परमात्मा चैतन्य है, वह तो हमारे परमपिता है, पिता तो कभी सर्वव्यापी नहीं होता।अत: परमपिता परमात्मा को सर्वव्यापी मानने से ही सभी नर-नारी योग-भ्रष्ट और पतित हो गये है और उस परमपिता की पवित्रता-सुख-शान्ति रूपी विरासत से वंचित हो दुखी तथा अशान्त है।
ॐ शांति
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