Revision Course 7 R

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पूरे 7 दिन का संक्षिप्त कोर्स: एक रिवीज़न

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यहाँ पूरे कोर्स का सार बिन्दुवार प्रस्तुत है :-

आत्मा अत्यंत सूक्ष्म,एक ज्योति-कण के समान है।जैसे रात्रि को आकाश में जगमगाता हुआ तारा एक बिन्दु-सा दिखाई देता है, वैसे ही दिव्य-दृष्टि द्वारा आत्मा भी एक तारे की तरह ही दिखाई देती है।

आत्मा शरीर में भृकुटि में रहती है।इसलिए भृकुटी में टीका लगाने, माताओं में बिन्दी लगाने की प्रथा है।जब मनुष्य अपने को भला- बुरा कहता है तो वह भृकुटी पर हाथ रखता है।

शरीर मोटर के समान है तथा आत्मा इसका ड्राईवर है, अर्थात जैसे ड्राईवर मोटर का नियंत्रण करता है, उसी प्रकार आत्मा शरीर का नियंत्रण करती है।आत्मा के बिना शरीर निष्प्राण है, जैसे ड्राईवर के बिना मोटर।

परमधाम में ही सबसे ऊपर सदा मुक्त, चैतन्य ज्योति बिन्दु रूप परमात्मा ‘सदाशिव’ का निवास स्थान है।इस लोक में आत्माएं कल्प के अन्त में, सृष्टि का महाविनाश होने के बाद अपने-अपने कर्मो का फल भोगकर तथा पवित्र होकर ही जाती है।

परमपिता परमात्मा का नाम ‘शिव’ है | ‘शिव’ का अर्थ ‘कल्याणकारी’ है।परमपिता परमात्मा शिव ही ज्ञान के सागर, शान्ति के सागर, आनन्द का सागर और प्रेम के सागर है।

परमपिता परमात्मा का दिव्य-रूप एक ‘ज्योति बिन्दु’ के समान है। उस दिव्य ज्योतिर्मय रूप को दिव्य-चक्षु द्वारा ही देखा जा सकता है और दिव्य-बुद्धि द्वारा ही अनुभव किया जा सकता है।

अतः जिस परमात्मा को पाने के लिए आपने इतनी भक्ति की, जप- तीर्थ,व्रत- उपवास किए।अब जबकि वह परमात्मा आ चुका है, आप भी उससे मिल सकते हैं और जीवन को सुख-शान्ति से भर सकते हैं।

हर एक धर्म के अनुयायी निराकार, ज्योति-स्वरूप परमात्मा शिव की प्रतिमा (शिवलिंग) को किसी-न-किसी प्रकार से मान्यता देते है।भारतवर्ष में तो स्थान-स्थान पर परमपिता परमात्मा शिव के मंदिर है।

जब सारी सृष्टि विकारों के पंजे में फंस जाती है तब परमपिता परमात्मा शिव सहज ज्ञान और राजयोग की शिक्षा देते है तथा सभी आत्माओं को परमधाम में ले जाते है तथा मुक्ति एवं जीवनमुक्ति का वरदान देते है।

परमात्मा सर्व व्यापक नहीं है!अपने परम प्यारे, परम पावन, परमपिता के बारे में यह कहना कि वह हर जीव में कुत्ते , बिल्ले , ठिक्कर, भित्तर सभी में है – यह कितनी बड़ी भूल है।

परमात्मा चैतन्य है, वह तो हमारे परमपिता है, पिता तो कभी सर्वव्यापी नहीं होता।अत: परमपिता परमात्मा को सर्वव्यापी मानने से ही सभी नर-नारी योग-भ्रष्ट और पतित हो गये है और उस परमपिता की पवित्रता-सुख-शान्ति रूपी विरासत से वंचित हो दुखी तथा अशान्त है।

वर्तमान समय यह संगम युग ही चल रहा है।अब यह कलियुगी सृष्टि नरक अर्थात दुःख धाम है अब निकट भविष्य में सतयुग आने वाला है जबकि यही सृष्टि सुखधाम होगी।अत: अब हमे पवित्र एवं योगी बनना चाहिए

मनुष्यात्मा सारे कल्प में अधिक से अधिक कुल 84 जन्म लेती है, वह 84 लाख योनियों में पुनर्जन्म नहीं लेती। मनुष्यात्माओं के 84 जन्मों के चक्र को ही यहाँ 84 सीढ़ियों के रूप में चित्रित किया गया है।

इस प्रकार देवता-वंश की आत्माएं 5000 वर्ष में अधिक से अधिक 84 जन्म लेती है। इसलिए भारत में जन्म-मरण के चक्र को “चौरासी का चक्कर” भी कहते है और कई देवियों के मंदिरों में 84 घंटे भी लगे होते हैं।

मनुष्यात्माएं पाशविक योनियों में जन्म नहीं लेती।यह हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात है।परन्तु फिर भी कई लोग ऐसे है जो यह कहते कि मनुष्य आत्माएं पशु-पक्षी इत्यादि 84 लाख योनियों में जन्म-पुनर्जन्म लेती है।

परमात्मा शिव ने समझाया है की रावण कोई दस शीश वाला राक्षस ( मनुष्य) नही था, बल्कि रावण का पुतला वास्तव में बुराई का प्रतीक है। रावण के दस सिर पुरुष और स्त्री के पांच-पांच विकारो को प्रकट करते है I

इस विश्व में द्वापरयुग और कलियुग में अर्थात २५०० वर्षो में "रावण राज्य" होता है। क्योंकि इन दो युगों में लोग माया या विकारो के वशीभूत होते है उस समय रोग शोक, अशांति और दुःख का सर्वत्र बोलबाला होता हैI

अब परमात्मा शिव गीता में दिए अपने वचन के अनुसार सहज ज्ञान और राजयोग की शिक्षा दे रहे है और मनुष्यात्माओ के मनोविकारो को ख़त्म करके उनमे देवी गुण धारण करा रहे है।वे विश्व में बापू-गाँधी के स्वप्नों के राम राज्य की स्थापना करा रहे है I

वर्तमान जन्म सभी का अंतिम जन्म है I इसलिये अब यह पुरुषार्थ न किया तो फिर यह कभी न हो सकेगा।क्योंकि परमात्मा द्वारा दिया गया यह मूल गीता - ज्ञान कल्प में एक ही बार संगम युग में ही प्राप्त हो सकता हैI

अब निकट भविष्य में श्रीकृष्ण ( श्रीनारायण) का राज्य आने ही वाला है तथा इससे इस कलियुगी विकारी सृष्टि का महाविनाश एटम बमों, प्राकृतिक आपदाओ तथा गृह युद्ध से हो जायेगा I

परम शिक्षक, परम सतगुरु परमात्मा शिव कहते है, "हे वत्सो ! तुम सभी जन्म-जन्मान्तर से मुझे पुकारते आये हो कि - हे प्रभो, हमें दुःख और अशांति से छुडाओ और हमें मुक्तिधाम तथा स्वर्ग में ले चलो I अत: अब मैं तुम्हे वापस मुक्तिधाम में ले चलने के लिए तथा इस सृष्टि को स्वर्ग बनाने आया हूँI वत्सो, अब आप वैकुण्ठ चलने की तैयारी करो।

गीता-ज्ञान द्वापर युग में नही दिया गया बल्कि संगम युग में दिया गया I वास्तव में गीता-ज्ञान परमात्मा शिव ने दिया था और फिर गीता ज्ञान से सतयुग में श्रीकृष्ण का जन्म हुआI

परमात्मा शिव ने इस सृष्टि रूपी कर्मक्षेत्र या कुरुक्षेत्र पर, प्रजापिता बह्मा (अर्जुन) के शरीर रूपी रथ में सवार होकर विकारो से ही युद्ध करने कि शिक्षा दी थी ,परन्तु लेखक ने बाद में अलंकारिक भाषा में इसका वर्णन किया तथा चित्रकारों ने बाद में शरीर को रथ के रूप में अंकित किया। बाद में वास्तविक अर्थ प्रायः विलुप्त हो गया I

परमात्मा को याद करते समय हमे अपनी बुद्धि सब तरफ से हटाकर एक जोतिर्बिंदु परमात्मा शिव से जुटानी चाहिए। मन चंचल होने के कारण काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार अथवा शास्त्र और गुरुओ की तरफ भागता है I लेकिन अभ्यास के द्वारा हमें इसको एक परमात्मा की याद में ही स्थित करना है।

राजयोग अभ्यास के लिए यह सोचना चाहिए कि- "मैं एक आत्मा हूँ, मैं ज्योति -बिंदु परमात्मा शिव की अविनाशी संतान हूँ। जो परमपिता ब्रह्मलोक के वासी है, शांति के सागर, आनंद के सागर प्रेम के सागर और सर्वशक्तिमान है --I" ऐसा मनन करते हुए मन को ब्रह्मलोक में परमपिता परमात्मा शिव पर स्थित करना चाहिए I

‘योग’ का अर्थ – ज्ञान के सागर, शान्ति के सागर, आनन्द के सागर, प्रेम के सागर, सर्व शक्तिवान, पतितपावन परमात्मा शिव के साथ आत्मा का सम्बन्ध जोड़ना है, ताकि आत्मा को भी शान्ति, आनन्द, प्रेम, पवित्रता, शक्ति और दिव्यगुणों की विरासत प्राप्त हो

यह सृष्टि ही घोर नरक बन गई है।इससे निकलकर हर कोई स्वर्ग में जाना चाहता है,लेकिन नरक से स्वर्ग की ओर का मार्ग कई रुकावटों से युक्त है।काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार उसके रास्ते में मुख्य बाधा डालते है।इन विकारों पर विजय प्राप्त करके मनुष्य से देवता बनने वाले ही नर-नार स्वर्ग में जा सकते है।

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