आपकी जिज्ञासाये समाधान ब्रह्माकुमारीज के 5

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आज के कोर्स से आपकी जिज्ञासाये समाधान ब्रह्माकुमारीज के

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आज हम उन प्रश्नो को आपके समक्ष प्रस्तुत करने जा रहे है जो सभी के मन में जानने की जिज्ञाषा होती है जिसे समझना और जानना भी अति आवश्यक है

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जिज्ञासा नः17-

आप कहते हैं, सृष्टि का महाविनाश निकट है और एक बहुत बडा युगपरिवर्तन समीप है, पर हम इसे व्यावहारिक ढंग से कैसे मान लें, जबकि बहुत से लोगों को हमने यह कहते हुए सुना है कि कलयुग तो अभी बच्चा है ?

समाधान-

शास्त्रों में तो यह लिखा है कि कलयुग के अभी 40 हजार वर्ष शेष हैं।सोचने की बात है अगर कलयुग के अभी इतने वर्ष बाकी मान लिए जायें, तो जब वह बूढा होगा तो दुनिया का क्या हाल होगा,उसकी कल्पना नहीं की जा सकती।

कहते हैं, संसार में इतने मिसाईल, परमाणु बम तैयार हैं, कि इस संसार को 39 बार खत्म किया जा सकता है।वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो ओजोन परत में छेद के कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणें (AV)सीधे पृथ्वी पर आ रही, जिनसे उत्पन्न बीमारियों का कोई इलाज नहीं है। इसी तरह विश्व- व्यापी तापमान वृद्धि अर्थात ग्लोबल वार्मिंग का खतरा दिनों दिन बढता जा रहा, परिणामस्वरूप उत्तरी- दक्षिणी ध्रुव ( North- South Pole) की बर्फ पिघलने लगी है।जिसके कारण समुद्र का जलस्तर बढ रहा है।वैज्ञानिको ने दावा किया है, कि इसी तरह बर्फ पिघलती रही तो निकट भविष्य में समुद्रतटीय शहर डूब जायेगें।ग्रीन हाउस गैसों के अधिक उत्सर्जन के कारण भी पूरे विश्व के औसत तापमान में लगातार वृद्धि बहुत बडा खतरा बना हुआ है।ग्रीन हाउस प्रभाव के सामान्य रहने पर औसत तापमान -18° से. होता है, जो वर्तमान में + 15° सेल्सियस तक पहुंच चुका है। इस तरह प्राकृतिक असंतुलन की गंभीर स्थिति पैदा हो गई है, जिसके कारण प्रकृति अपना कहर ढाने लगी है।जनसंख्या विस्फोट एक बहुत बडी समस्या का रूप धारण कर ही चुकी है।

इन सारे वैज्ञानिक तथ्यों से एक बात तो स्पष्ट है कि एक महान परिवर्तन सामने खडा है।परमात्मा ने कहा है, विनाश तो पूरी तरह से होगा नहीं, एक सतयुगी दुनिया की स्थापना के रूप में युगपरिवर्तन होगा।

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जिज्ञासा नः18-

बिग-बैग थ्योरी क्या है या उसी तरह जो यह बात कही गई है कि किस तरह से पृथ्वी का जन्म हुआ था, तो क्या वैसे वह नहीं जन्मी थी ???

समाधानः-

पहले हमें बताया गया था कि पृथ्वी चपटी है और कितने समय तक यही सोच चलती रही, विज्ञान ने एक दिन बताया कि, पृथ्वी चपटी नहीं गोल है।इसी तरह समय चक्रीय है, इसके ऊपर की बहुत सारी थ्योरीज हुई, लेकिन इन थ्योरीज को अभी भी संदिग्ध माना जा रहा है।और वो भी वैज्ञानिक ही मान रहे हैं,क्योंकि लगातार रिसर्च जारी हैं।हर थोडे समय के बाद आप रिसर्च करेंगें तो आपको नये-नये साक्ष्य और तथ्य मिलेगे।जिससे आपकी पहले की धारणाएं और विश्वास बदलने लगेगे।

अभी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दो वैज्ञानिको ने बिग बैग थ्योरी (सिद्धांत) की मीमांसा (contradict) की।इस थ्योरी को चैलेंज करते हुए उनका कहना है कि समय अविनाशी है वो न तो क्रिएट न कभी समाप्त होगा।जैसे दिन और रात का चक्र,ऋतुओं का चक्र वैसे ही एक उससे थोडा बडा चक्र ये विश्व, ये कब शुरू हुआ या ये कभी शुरू भी हुआ था या नहीं और क्या कभी यह खत्म भी होने वाला है, इन सवालों के जवाब मिल जाते हैं तो भय समाप्त हो जाता है।समय चक्रीय है और विज्ञान ने भी इसको अब खोजना शुरू कर दिया है, कि ये विश्व नाटक भी एक समय का चक्र है।चक्र है इसलिए उसकी न कभी शुरूआत है, न ही उसका कभी अन्त है।

वास्तव में जो इस ड्रामा का डायरेक्टर है, या जो इस ड्रामा से पूरी तरह अलग या साक्षी होकर ड्रामा को देख रहा,वह निराकार परमात्मा सृष्टि पर अवतरित होते हैं, तब स्वयं हमें समय का परिचय देते हैं, कि समय भी एक चक्र है।जिसे हम कालचक्र कहते आये हैं।

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जिज्ञासा नः19-

आप ने बताया रावण के दस सिर विकारों के प्रतीक हैं, कुम्भकर्ण अज्ञान-निद्रा का, तो क्या सतयुग और त्रेतायुग में राक्षस थे ही नहीं ?

समाधानः-

हमने दन्तकथाओ में सतयुग में हिरणकशिपु और त्रेतायुग में रावण नाम के असुर को सुना है।वास्तव में ये कथाएँ ऐतिहासिक नहीं, बल्कि इनका आध्यात्मिक रहस्य ही है कृष्ण,राम आदि के महत्व को दर्शाने के लिए कथायें गढ ली गई।भला राम का चरित्र वर्णन करने वाली बाल्मीकि रामायण, तुलसी कृत-रामचरितमानस, मैथलीशरण गुप्त कृत साकेत में इतना भारी अन्तर कैसे हो सकता है।निश्चय ही सबने कल्पना के रंग भरे।जैसे आज कहानियां या फिल्मों की पटकथा लिखी जा रही, वैसे द्वापर के शुरू में भी लोगों ने देवो की कथाओ की रचना आध्यात्मिक भाव से की और बाद के लोगों ने मनमाने तरीके से बदलाव भी किया।

देवताओं के राज्य में भला असुर क्या हो सकते हैं? देवताओं पर तो असुरों की दृष्टि नहीं पड सकती।सतयुग के सतोप्रधान काल में भला असुर और मनुष्य कहाँ से आ सकते हैं।

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जिज्ञासा नः20-

स्वर्ग और नरक वास्तव में किसे कहेंगे ? किसी मनुष्य के मरने पर यह जो कहा जाता है, कि " वह स्वर्ग सिधारा"-ऐसा कहना ठीक है ?

समाधानः-

सतयुग और त्रेतायुग की सृष्टि में सम्पूर्ण सुख और शांति होती है।और "यथा राजा-रानी तथा प्रजा", सभी दैवी गुण सम्पन्न होते हैं।इसलिए स्वर्ग कोई ऊपर नहीं है, बल्कि सतयुगी और त्रेतायुगी सृष्टि ही द्वापर और कलियुगी सृष्टि की तुलना में चारित्रिक व सुख आदि की दृष्टि से स्वर्ग या बैकुण्ठ है।जबकि द्वापर और कलियुगी सृष्टि ही पतित और दुःखी है, इसीलिये नरक है।

अगर मरने के बाद सभी स्वर्ग सिधार जाते तो अब तक स्वर्ग में भी भीड हो जाती।और वहाँ भी जनसंख्या वृद्धि के कारण ऐसे दुख होता।वास्तव में द्वापर और कलियुग में जब आत्माये शरीर छोडती है, तो वह इसी सृष्टि में पुनर्जन्म लेती हैं, क्योंकि यहां के लोगों से उनका कर्म खाता जुटा होता है।उनकी कुछ वासनाएं और विकार भी रहे होते हैं। इसलिए इन दो युगों में स्वर्गवासी कहना तो बिल्कुल गलत बात है।वास्तव में ऐसा लोग सम्मान-भाव देने के लिए कहते हैं।

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जिज्ञासा नः21-

"जीते जी मरना" इसके बारे में हम कई बार सुन चुके,आखिर यह कैसा मरना होता है ?

समाधान:-

जीते जी मरने का अर्थ है कि प्राणी का अन्त होने से पहले अर्थात अभी इस दुनिया को देखते हुए न देखना, इसके विषय विकारों से तथा मोह ममता से निकलकर अनासक्त भाव को धारण करना तथा ज्ञान द्वारा आत्मा रूपी दीपक को जगाना।अतः अपनी देह को भूलकर देह के सर्व सम्बन्धियो से बुद्धि की लग्न तोडकर परमपिता परमात्मा से आत्मिक नाता जोडना।

जब मनुष्य मरने लगता है, तो लोग उसके मुख में गंगा-जल डालते हैं और गीता सुनाते हैं।परन्तु कलियुग का अन्त होने से सबका अन्तिम समय है, अब परमात्मा जो गीता ज्ञान सुना रहे, उस गंगाजल से जीवनमुक्ति का अधिकारी हमे बन जाना है।

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ॐ शांति

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