Revision Course 5 R

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पाँचवे दिन का कोर्स रिवीजन

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आज के कोर्स के प्रमुख बिन्दु इस तरह हैं-

कलियुग का विनाश अति निकट है, शीघ्र ही सतयुग आने वाला है। सृष्टि के महाविनाश के लिए एटम बम, हाइड्रोजन बम तथा मूसल(मिसाइल आदि) बन चुके है।अत: अब भी यदि कोई कहता है कि महाविनाश दूर है, तो वह घोर अज्ञान में है और कुम्भकर्णी निद्रा में सोया हुआ है, वह अपना अकल्याण कर रहा है।

आज विशेषज्ञ भी कह रहे कि जनसंख्या का तीव्र गति से बढना अत्यंत भयंकर अकाल का संकट पैदा कर महाविनाश की स्थिति उत्पन्न करेगा। वातावरण प्रदूषण तथा पेट्रोल, कोयला इत्यादि शक्ति स्त्रोतों के कुछ वर्षो में ख़त्म हो जाने कि घोषणा भी वैज्ञानिक कर रहे है।बर्फ के पिघलते रहने से समुद्रतटीय क्षेत्र जलमग्न हो जायेगें।

आज केवल रूस और अमेरिका के पास ही लाखो इतने बमों जितने आणविक शस्त्र है उससे अनेक बार इस धरती को खत्म किया जा सकता है।

परमात्मा शिव ने समझाया है की रावण कोई दस शीश वाला राक्षस ( मनुष्य) नही था, बल्कि रावण का पुतला वास्तव में बुराई का प्रतीक है। रावण के दस सिर पुरुष और स्त्री के पांच-पांच विकारो को प्रकट करते है।

रावण की तुलना एक ऐसे समाज का प्रतिरूप है, जो विकारी स्त्री-पुरुष से बना हो। इस समाज के लोग बहुत ग्रन्थ और शास्त्र पढे हुए हैं पर वे हिंसा और अन्य विकारो के वशीभूत होते है। इसीलिए रावण को शास्त्रों का ज्ञाता दिखाया है।रावण " शब्द का अर्थ ही है - जो दुसरो को रुलाने वाला हो।

इस विश्व में द्वापरयुग और कलियुग में अर्थात २५०० वर्षो में "रावण राज्य" होता है। क्योंकि इन दो युगों में लोग माया या विकारो के वशीभूत होते है उस समय रोग शोक, अशांति और दुःख का सर्वत्र बोलबाला होता हैI मनुष्यों का खानपान असुरों जैसा (मांस, मदिरा, तामसी) हो जाता है।

इसके विपरीत स्वर्ण युग और रजत युग में राम-राज्य था, क्योंकि परमपिता, जिन्हें की रमणीक अथवा सुखदाता होने के कारण " राम" भी कहते है, ने उस पवित्रता, शांति और सुख संपन्न देसी स्वराज्य की पुन: स्थापना की थी।

अब परमात्मा शिव गीता में दिए अपने वचन के अनुसार सहज ज्ञान और राजयोग की शिक्षा दे रहे है और मनुष्यात्माओ के मनोविकारो को ख़त्म करके उनमे देवी गुण धारण करा रहे है।वे विश्व में बापू-गाँधी के स्वप्नों के राम राज्य की स्थापना करा रहे है।

मनुष्य जीवन का लक्ष्य जीवन-मुक्ति की प्राप्ति अर्थात वैकुण्ठ में सम्पूर्ण सुख-शांति-संपन्न श्री नारायण या श्री लक्ष्मी पद की प्राप्ति ही है। क्योंकि वैकुण्ठ के देवता तो अमर माने गए है, उनकी अकाले मृत्यु नही होती; उनकी काया सदा निरोगी रहती है।

जब परमपिता परमात्मा शिव ने इस सर्वोत्तम ईश्वरीय विद्या की शिक्षा देने के लिए ईश्वरीय विश्व-विद्यालय की स्थापना की है। तो सभी हम सभी अपने घर-गृहस्थ में रहते हुए, अपना कार्य धंधा करते हुए, प्रतिदिन एक-दो- घंटे निकालकर अपने भावी जन्म-जन्मान्तर के कल्याण के लिए इस सर्वोत्तम तथा सहज शिक्षा को प्राप्त करे।

वर्तमान जन्म सभी का अंतिम जन्म है। इसलिये अब यह पुरुषार्थ न किया तो फिर यह कभी न हो सकेगा।क्योंकि परमात्मा द्वारा दिया गया यह मूल गीता - ज्ञान कल्प में एक ही बार संगम युग में ही प्राप्त हो सकता है।

एक समय था जबकि विश्व में सम्पूर्ण सुख शांति का साम्राज्य था और यह सृष्टि फूलो का बगीचा कहलाती थीI प्रकृति भी सतोप्रधान थी। और किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदाए नही थी। मनुष्य भी दैवीगुण संपन्न थे। उस समय यह संसार स्वर्ग था, जिसे सतयुग भी कहते है

अब निकट भविष्य में श्रीकृष्ण ( श्रीनारायण) का राज्य आने ही वाला है तथा इससे इस कलियुगी विकारी सृष्टि का महाविनाश एटम बमों, प्राकृतिक आपदाओ तथा गृह युद्ध से हो जायेगा।

श्रीकृष्ण सतयुग के पहले राजकुमार थे, स्वयंवर के बाद श्रीनारायण कहलाये तभी तो श्रीकृष्ण के बुजुर्गी के चित्र नही मिलते। अत: श्रीकृष्ण अर्थात सतयुगी पावन सृष्टि के प्रारम्भ में आये थे और अब पुन: आने वाले हैं।

बहुत-से लोगो की यह मान्यता है कि श्रीकृष्ण द्वापर युग के अंत में आते है। उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि श्रीकृष्ण तो सर्वगुण संपन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी एवं पूर्णत: पवित्र थे। तब भला उनका जन्म द्वापर युग की रजो प्रधान एवं विकारयुक्त सृष्टि में कैसे हो सकता है ?

परम शिक्षक, परम सतगुरु परमात्मा शिव कहते है, "हे वत्सो ! तुम सभी जन्म-जन्मान्तर से मुझे पुकारते आये हो कि - हे प्रभो, हमें दुःख और अशांति से छुडाओ और हमें मुक्तिधाम तथा स्वर्ग में ले चलो। अत: अब मैं तुम्हे वापस मुक्तिधाम में ले चलने के लिए तथा इस सृष्टि को स्वर्ग बनाने आया हूँI वत्सो, अब आप वैकुण्ठ चलने की तैयारी करो।

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