Day 4 D
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4rt day class
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ओम शांति आज की क्लास में हार्दिक स्वागत है आपका
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पिछले 3 क्लास में हमने काफी कुछ जाना है
हम एक आत्मा है, परम पिता परमात्मा हमारा पिता है उसका निवास स्थान , कर्त्तव्य इस बारेमे भी हमने जाना।
आज और एक नया बाते आपके सामने रखेंगे।
भक्ति मार्ग में ज्यदा तक लोगों को लगता है शिव और शंकर एक ही है।
यह एक महान भूल है।
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शिव भगवान है-शंकर सूक्ष्म देवता है।
शंकर शिव के स्मृति में निमग्नहोते हुए शंकर के सामने शिव लिंग दिखाया गया है।
शिव परमधाम वासी -शंकर सूक्ष्मवतन वासी।
शिव कलयाणकारी -शंकर विनाशकारी।
शिव ज्योतिर्बिंदु-शंकर तपस्यीमूर्ति है।
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शंकर के रूप का अर्थ-
शंकर के सिर पर रहने वाली चन्द्रमा शीतलता के दैवी गुण की चिन्ह है।
कंठ में साँप माना विकारो रूपी सर्पों को गले का हर बनाने का चिन्ह है।
सिर पर गंगा का अर्थ बुद्धि में ज्ञान गंगा प्रबाह करने की चिन्ह है।
वैराग्य के प्रतिक कब्रिस्थान में विहारते रहते है।
बाघ की खाल शक्तिशाली स्थिति का चिन्ह है।
ज्ञान रूपी त्रिनेत्र की स्मृति चिन्ह तीसरा नेत्र कहा जाता है।
आशा करते है अब आपको और कभी भी यह भ्रम नही होगा की शिव और शंकर एक ही है
अब हम और थोडा आगे चलते है
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शिव का जन्मोत्सव रात्रि में क्यों ?
एक शिव का जन्मतसब रात्रि में मनाया जाता है क्यों की---रात्रि वास्तब में अज्ञान ,तमोगुणी अथवा पापाचार की निशानी है।
द्रापरयुग से कलियुग के समय को रात्रि कहा जाता है।
कलियुग के अन्त में जबकी साधू सन्यासी ,गुरु ,आचार्या इत्तादि सभो मनुष्य पतित तथा दुखी होते है और अज्ञान निद्रा में सोये पड़े होते है ,जब धर्म की ग्लानि होती है और जब यह भारत विषय विकारी के कारण वेश्यालय बन जाता है,तब पतित पावन परमपिता परमात्मा शिव इस सृष्ठि में दिव्या जनम लेते है।
इसलिये अन्य सबका जन्मोत्सव जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है परंतु परमात्मा शिव के जन्म दिन को शिव रात्रि ही कहा जाता है।
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