Day 6 D

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6th day class

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आज की क्लास में आप सभी को दिल से स्वागत करते है।

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आज हम पढ़ेंगे एक मनुष्य कितने जनम लेते है इस बारेमे। इस विषय पर भी बहुत मत-भेद है। कोई कहते है 84 जन्म कोई कोई कहते है 84 लाख जन्म। हम आज इस पर प्रकाश डालेंगे।इसके बाद आप खुद ही विचार कीजियेगा सच क्या और झूट क्या??? निचे दिए गया पिक्चर को देखिये।

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इसमें एक शिढ़ि दिखाई गयी है। जिसमे दिखाई गयी है ---

मानव आत्मा कितने जन्म लेती है ?किस युग में कितने होते है।

मानव आत्मा सारे कल्प में 84 जन्म लेते है। मानव आत्मा ज्यदा से ज्यदा 84 जन्म ,काम से काम 1 जन्म लेती है। 84 जन्म की चक्र सीढ़िया के रूप में चित्रित किया गया है।

सीढ़ी की ऊपर देखे।इसमें सतयुग दिखाया गया है। इस युग में 8 हैं लेती है।इस युग की आयु 1250 वर्ष है। इस युग में लक्ष्मी नारायण की पालना होती है। राधे कृष्णा की around 30वर्ष पूरा होनेबाद स्वयंभर के पश्चात् लक्ष्मी नारायण बन राज्य् करेंगे।

लक्ष्मी नारायण 100% सुख शांति सम्पन्न 8 जन्म लेते है। इसलिए भारत में 8 की संख्या शुभ मानी गई है। और कोई लोग केवल 8 मणको की माला सिमरण तथा अष्ठ देवताओं का पूजा भी करते है। इस समय को सूर्य वंस भी कहा जाता हैं। यह हर एक 150 वर्ष पूरी तरह से जीने के बाद पुराण शरीर छोड़ नया शारीर धारण करते है।

9 लाख जनसंख्या से सुरु हुए सतयुग अंत तक पबुचते 2 कोरोड़ आबादी होते है।

फिर त्रेता के1250 वर्ष में 14 कला सम्पन्न राम-सीता के वंस पुज्ज्य राजा -रानी अथवा उच्च प्रजा के रूप में 12 जन्म लेते है। इस युग के अन्त में 33 कोड़ोड़ आवादी होते है।इस युग को चंद्रवंशी कहा जाता है। इन दोनों युगों में न्यायालय नही होते विकार वहा संग संध विद्रोह काम नही करते ।इसलिए इन दो युगों को मिलाकर स्वर्ग व राम राज्य् कहलाता है।इस प्रकार सतयुग और त्रेतायुग में कुल 2500 वर्षो में सम्पूर्ण पवित्रता सुख शांति और स्वस्थ सपन्न 21 दैवी जन्म लेते है। इस 21 दैवी जन्म में कुल मिलकर 33 कोरोड़ जनसंख्या होता है।इसलिए भारत में आज भी गायन है। भारत 33 कोरोड़ देवी देवताओं का देश है।

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द्वापर और कलियुग में कुल मिलकर 63 जन्म होता है।

धीरे धीरे पुनर जन्म लेते लेते कलाएं भी कम होते जाते है। और सुख भी कम होते जाते है। और देह अभिमान में आना सुरु होता है। द्वापर माना 1/2 soul consciousness 1/2 body consciousness. Body consciousness में आने के नाते इस समय मनुष्य में थोडा थोडा दुःख सुरु हो जाता है।और वो सुखो के लिए पूजा पाठ आदि सुरू कर देते है। इस समय मनुष्य 21 जन्म लेते है।

चित्र में द्वखिये--सीढ़ी और भी उतारते जाते है ।कलाएं और भी कम होता जाता है। दुःख अशांन्ति भी बढ़्ते जाते है। सुख शांति के लिए इंसान भटकते रहते है।। इसलिए द्वापर में जो देवता थे वो ही पुज्ज्य और कलियुग आते आते खुद ही पुजारी बन गयी।

द्वापर युग से कुछ आत्माएं जैसे की बुद्ध, गुरु नानक ,क्रिस्ट आदि धरती पर आते है।अपने धर्म स्थापन करके धर्म बोध करते मानव में परिवर्तन लेन के लिए प्रयास करना आरम्भ करते है।

द्वापर के अंत तक आत्मा में 8 कला और कलियुग की अंत तथा अभी का समय आत्मा की कला सुण्य है। इस समय मनुष्य ज्यादा से ज्यादा 42 जन्म लेती है। और 2500 वर्ष ऐसे पूरा होता है। कुल मिलकर इस चक्र 5000 वर्ष का पूरा होता है इस युग के अंत तक परमधाम में रहने वाली सब आत्माये आकर परमधाम खाली होता है। अधर्म हद पार करते दुःख,अशांति,अकाल मृत्त्यु,प्राकृतिक आपदाओं,साइन्स की दुर्घटनाये धीरे धीरे बढ़कर त्राहि त्राहि मचाते है। पिछले जन्मों में किये हुए पाप की खातों को पूरा करने का समय यही है। क्यों की परमपिता परमात्मा धरती पर अवतरित हो चूका है।सब पतितों को पावन बनाकर आपने घर ले जाने के लिए । एक नया सृष्ठि तथा फिर से इस धरा पर सतयुग लेन के लिए

इसलिए भारत में जन्म-मरण के चक्रों को ''चौरासी का चक्कर '' भी कहते है और देवियों का मंदिरों में 84 घंटे भो लगे होते है तथा उन्हें ''84 घंटे वाली देवी'' नाम से लोग याद करते है।

यह तो गया 84 जन्म का तथा 5000 साल का अद्भुत कहानी। जो की परमपिता परमात्मा धरती पर आकर खुद बताया है।

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अब हम प्रकाश डालते है और एक वितार्कित विषय पर

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मनुष्यात्मा 84 लाख योनिया धारण नहीं करती

परमपिता परमात्मा शिव ने वर्तमान समय जैसे हमें इस्वरियों ज्ञान के अन्य अनेक मधुर रहष्य समझाया है वैसे ही यह भी एक नयी बात समझाई की वास्तव में मनुशात्माएँ कोई भी पाशविक योनिया में जन्म नही लेती।यह हमारे लिए बहुत ही ख़ुशी की बात है।

84 janam

परन्तु फिर भी कोई लोग ऐसा है जो कहते है की मनुष्यात्माएँ पशु-पक्षी इत्तादि 84 लाख योनियों में जन्म-पुनर्जन्म लेती है। उनकी पापों के अनुसार।

हम एक बात आपसे पूछते है वास्तब में कौन ज्यदा भोगते है । मनुष्य या पश-पक्षी? आज मनुष्य में कितना सरे बीमार दिखाय जा रहा है। और पशु -पक्षियों में ? आप खुद ही सोचिये यह सच या झूट। पाप कर्म इंसान से ही ज्यदा होता है।पशु-पक्षीयो में नहीं। तो फेर पापों का फल स्वरुप पशु-पक्षियों का जन्म होता है यह सच है? आपको क्या लगता है ?

यदि मनुष्य आत्माये पशु योनि में पुनर्जन्म लेती तो मनुष्य गणना बाढ़ती न जाती।आप स्वयं ही सोचिये की यदि बुरे कर्मो के कारण मनुष्यात्मा का पुनर्जन्म पशु योनि में होता, तब तो हर वर्ष मनुष्य गणना बढ़ती न जाती,बल्कि घटती जाती क्योंकि आज सभी के कर्म ,विकारों के कारण विकर्म बन रहे है। परंतु आप देखते है की फिर भी मनुष्य गणना बढ़ती हो जाती है,क्योंकि मनुष्य पशु-पक्षी या किट पतंग आदि योनिया में पुनर्जन्म नहीं ले रहे है। आपका क्या कहना ?

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