Day 5 D
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5th day class
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आज की क्लास में आप सभी को दिल से अभिनन्दन ,स्वागत है आपका अभी तक classes में हमने काफी कुछ जाना है...
मैं कौन हु?
सर्व आत्माओ के पिता परमपिता परआत्मा का भी परिचय मिला हमें । बस अभी उसके साथ एक प्यारसा रिश्ता जोड़ना है हमें।नही तो सिर्फ जानने से कोई फायदा नही।
शिव और शंकर में अंतर।
शिव रात्रि का रहष्य
अदि..
आइये आज हम और एक स्टेप आगे बढ़ते है।
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आज जो टॉपिक के बारे मे हम प्रकाश डालने जा रहे है इसको लेके बहुत मतभेद है।बहुत interesting भी है।
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सृष्ठि चक्र
WORLD DRAMA WHEEL
(Wonderful secret)
शिव भगवानुवाच.....आप यहां पहेली बार ही नहीं आए, आप 5000 वर्ष पूर्व भि इसी स्थान पर, इसी समय पर इसी प्रकार ज़े आए थे,अब आए है और हर 5000 वर्ष पश्चात् आते रहेंगे क्योंकि इस सृष्ठि रूपी नाटक की हर 5000 वर्ष पश्चात् हूबहू पुनरावृत्ति होती है।
है ना रहष्य की बात।
अब इसको थोडा विश्लेषण करते है।
सृष्ठि रूपी नाटक के चार पद ऊपर चित्र दिखाया गया है की स्वस्तिक सरिःथि चक्र की चार बराबर भागो में बाँटता है--
सतयुग,
त्रेता युग
द्रापर युग
कलियुग
सृष्ठि नाटक में हर एक आत्मा एक निश्चित समय पर परमधाम से इस सृष्ठि रूपी नाटक के मंच पर आती है।सबसे पहले सतयुग और त्रेता युग के सुन्दर दृश्य सामने आते है और इन दो युग की सुखपूर्ण सृष्ठि में पृथ्वी मंच पर एक अदि सनातन देवी-देवता धर्म -वंश की ही मनुष्य आत्माओं का पार्ट होता है। अन्य सभी धर्मात्माएँ परमधाम में होती है।
सृष्ठि नाटक में हर एक आत्मा एक निश्चित समय पर परमधाम से इस सृष्ठि रूपी नाटक के मंच पर आती है।
सबसे पहले सतयुग और त्रेता युग के सुन्दर दृश्य सामने आते है और इन दो युग की सुखपूर्ण सृष्ठि में पृथ्वी मंच पर एक अदि सनातन देवी-देवता धर्म -वंश की ही मनुष्य आत्माओं का पार्ट होता है। अन्य सभी धर्मात्माएँ परमधाम में होती है।
द्वापर युग में यह धर्म ही रजोगुण अवस्था में इब्राहिम से इसलाम धर्म ,बुद्ध से बौद्ध धर्म , क्राईस्ट से क्रिस्टियान धर्म , स्थापन होती है। यह चार मुख्या धर्मपिताएं ही दुनिया के ड्रामा के मुख्या एक्ट्रेस। इनके धर्म ग्रन्थ ही मुख्या शास्रों है।
इनके अतिरिक्त , संन्यास धर्म के स्थापक शंकराचर्य ,मुसलमान (मुहमदी) धर्म -वंश के स्थापक मुहम्मद तथा सिख धर्म के संस्थापक नानक भी इस विस्व नाटक के मुख्या अक्टिरों में से है।
इन अनेक मत मतान्तर के कारण द्वापर युग तथा कलियुग की सृष्ठि में दैत , लड़ाई -झगरा तथा दुःख होता है।
कलियुग के अंत में धर्म पूरी तरह नष्ट हो जाता है।
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श्रीमद् भगवत गीता में भी कहा गया है....
यदा यदा ही धर्मश्य ग्लानिभर्वति भारत
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मं स्थापनायर्थ सम्भायामी युगे युगे।
अभी बिलकुल वह ही समय है हर तरफ अति हो चूका हा। इसलिए इस सृष्ठि नाटक की करता और डायरेक्टर शिव परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा की शारीर में स्वयं अवतरित होते है। इस कल को संगम युग कहते है
कलियुग के अंत और सतोयुग की आरम्भ के बिच में यह संगम युग बहुत ही महत्यपूर्ण है। क्योंकी सिर्फ इस समय ही हम परमात्मा के साथ मिलान माना सकते है।
इस प्रकार से अनादि से निश्चित जो यह सृष्ठि नाटक 5000 वर्षो में एक बार जो है वैसे ही पुनरावृत्ति होती ही रहती है।
4 युगों को मिलकर कल्प कहा जाता है।कल्प में एक बार सृष्ठि चक्र जैसा है वैसा चलता ही रहता है। इसलिए कुछ भी होजाए वह नया कुछ भी नहीं,कल्प में जो हुआ अब हो रहा है ,अब जो हुआ फिर कल्प में होगा।
यह सृष्ठि नाटक का ज्ञान बुद्धि में रखने वाले कुछ भी हो वह ड्रामा में है इसलिए हुआ तो स्थिर रहेंगे।
नारायण के हाथ में सुदर्शन चक्र इस सृष्ठि चक्र घूमने का ही प्रतिक मात्र है।
कलियुग के विनाश के बाद इस धरती पर सतयुग आनेवाला है।इस सतयुग में पहेला राजकुमार श्री कृष्णा का राज्य् आने वाला है।
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भक्ति में कृष्णा पानी के बिच में पीपल की पत्ते पर तैरते दिखए ....उसका अर्थ क्या है??
शिव परमात्मा बता रहे है---विनाश के बाद दुनिया में जो 3 भाग धरती जलमई होता है ,विदेश के निशानी भी नही होंगे, सिर्फ भारत देश हो बच जायेगा, कृष्णा का राज्य् सुरु होता है इसलिए भारत देश को पीपल के पत्ते,जलमई को पानी में दिखाया है। भविष्य में आनेवाले स्वर्ग किस तरह है वह सुन्दर दृश्य को निचे पिक्चर में दिखाया गया है।
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